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दहेज़ एक अभिशाप



दहेज़ एक अभिशाप


 *स्थान* - अनुभा नर्सिंग होम

पर्दा उठता है
 *प्रस्तावना* - डॉ अनुभा अपने नर्सिंग होम में मरीजों को देख रही हैं।
बेड पर एक लड़की लेटी हुई है वह उसकी जाँच करती हैं और दूसरे मरीज को बुलाती हैं।

 *डॉ अनुभा* -नेक्स्ट पेसेंट प्लीज़
 *राकेश-* नमस्ते डॉ साहिबा
 *अनुभा* - आपको क्या तकलीफ़ है
 *राकेश-* डॉ साहिबा दिल में दर्द होता है, रातों को नींद नहीं आती है। ज़रा सी आँख लगी नहीं कि सपने देखने शुरू। मैं बहुत परेशान हो गया हूँ डॉ साहिबा!
अनुभा -मैंने कुछ टेस्ट लिख दिया है ,आप जाँच करा कर कल रिपोर्ट दिखाइए उसके बाद मैं आपको दवाई लिखूँगी।
राकेश-आपकी बहुत बहुत मेहरबानी डॉ साहिबा लेकिन आप इस दिल के दर्द की कोई दवा अभी लिख दें।
क्योंकि यह दिन में कई बार जोर पकड़ लेता है खासकर तब जब कोई सुंदर कन्या नज़रों से टकरा जाती है।
अनुभा अब मरीज को ध्यान से देख कर- " राकेश पाज़ी ,मक्कार तुम्हारी कालेज की आदत अभी गई  नहीं। पहले तुम्हारी दाढ़ी मूँछ होती थी । अब तुम क्लीन शेव्ड हो चुके हो। इसलिए तुम्हें पहचान नहीं पाई।
चलो उठो यहाँ से मुझे और भी पेशेंट देखने हैं।
राकेश - बाय जानेमन
अनुभा- (स्वगत)
ये कब आया जापान से। इसकी मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब लग गई थी। छुट्टी लेकर आया होगा।

द्वितीय दृश्य- शाम का समय 
स्थान - अनुभा का घर

अनुभा के पिता मनोज जी - बेटे अनुभा कोई बेल बजा रहा है ,दरवाजा खोल दो।
अनुभा-हाँ पिताजी 
अरे तुम यहाँ भी आ गए
राकेश- मम्मी पापा के साथ आया हूँ, तुम्हारा हाथ माँगने।
पहले बताया क्यों नहीं
तुम्हें  पता है कि मुझे सरप्राइज देने की आदत है। मम्मी -पापा को कहा है कि अपने दोस्त राहुल घर जा रहे हैं।
 *राकेश के पापा रविकान्त-* राकेश बेटे ये तो राहुल का घर नहीं लग रहा। दूसरा मकान खरीदा क्या उसने।
अनुभा- अंकल -आँटी आपलोग अंदर आइये।
वे लोग बैठक में प्रवेश करते हैं।
मनोज जी और रविकान्त जी एकदूसरे को देखकर चौंक जाते हैं।
मनोज जी- कहिये भाई साहब कैसे आना हुआ।
रविकान्तजी- ये मेरा बेटा भी न, कह रहा था अपने दोस्त के घर चल रहा है पता नहीं क्यूँ इधर आ गया।
राकेश-आपलोग एक दूसरे को जानते हैं?
रविकान्त जी चुप रहते हैं।
 *मनोज जी* - हाँ मैं अपनी बेटी अनुभा की शादी के लिए इनके घर गया था। इनका बेटा मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर है।
राकेश- लेकिन पापा आपने तो मुझे नहीं बताया?
रविकान्त जी हकलाते हुए- व्वो बेटा बात बनी नहीं इसलिए मैंने तुम्हें बताना जरूरी नहीं समझा।
राकेश- पापा -मम्मी मैं आपको इसीलिये यहाँ पर लेकर आया हूँ । अनुभा को मैं पसंद करता हूँ।
मनोज जी- लेकिन बेटा अनुभा दहेज प्रथा की  सख्त खिलाफत करती है।
राकेश- अंकल आपसे दहेज़ कौन मांग रहा है। मुझे केवल अनुभा चाहिए।
तभी अनुभा प्रवेश करती है
अनुभा- पापा आप मुझे बिना बताए इनलोगों से विवाह की बात करने गए थे। उस दिन मैंने आपसे पूछा था कि पापा आप उदास क्यों लग रहे हैं तो आपने टाल दिया था।
पापा बताइये न क्या हुआ था उस दिन।
मनोज जी चुप रहते हैं।
राकेशअपने पिता जी से - पापा आप बताइए न  क्यों बात नहीं बनी? अनुभा जैसी बहु मिलना किसी के लिए भी सौभाग्य की बात होंगी।
रविकान्त मुँह झुकाए हुए- मनोज जी मुझे क्षमा कर दीजिए, मैं पैसों के लालच में आकर आपसे असीमित दहेज़ की माँग कर बैठा था क्योंकि मुझे पता था आप बहुत बड़े ऑफिसर थे और अनुभा आपकी एकलौती बेटी है। उसके लिए आप कुछ भी करेंगे। 
मुझे भी अपनी बेटी का विवाह करना है उसे भी तगड़ा दहेज देना पड़ेगा।
राकेश- पापा मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी।
रिया की शादी में आप दहेज़ देंगे इसलिए आप मेरी शादी में तगड़ा दहेज लेंगे। आपने रिया से कभी पूछा कि वह क्या चाहती है और किस चीज की कमी है आपके पास और यदि हमारे पास कुछ भी न होता तो भी मैं दहेज लेने का घृणित अपराध कभी न करता।
अनुभा- अंकल अगर विवाह के बाद आप मुझे दहेज़ के लिए प्रताड़ित करने लगे तो। आजकल बहुओं को जलाकर मारने के कई खबरें देखने सुनने को मिलती हैं।
लड़की को इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह जलकर,डूबकर,लटककर, तड़पकर, रेल के नीचे कट कर ज़हर खाकर या और भी किसी तरीके को अपना कर मर जाती हैं और दे जाती हैं अपने जन्मदाता को अथाह पीड़ा और कभी खत्म न होने वाली वेदना।
रविकान्त- बेटी तुम मुझे और सुनाओ मैं हूँ ही इसी लायक लेकिन मुझे क्षमा कर दो। मैंने बहुत बड़ा अपराध किया है।
राकेश- पापा आप को अनुभा और आँटी से भी माफी मांगनी होगी। यदि अनुभा का विवाह कहीं और हो जाता तो मेरा क्या होता।
रविकान्त और उनकी पत्नी- आपलोग हमें क्षमा कर दें।
हमें अपनी गलती समझ में आ गई है। अब से हम भी इस प्रथा के सख्त खिलाफ हैं और इसके विरुद्ध आवाज़ उठाएंगे। गरीब लड़िकयों के विवाह में बढ़ चढ़ कर सहयोग करेंगे।

सभी पात्र स्टेज पर इकट्ठे होकर गाते हैं।

 **अब किसी घर में नहीं जलेगी बेटी।* 
 *दहेज के लिए न सताई जाएगी कोई* बेटी।
 *न दहेज लेंगे और न ही देंगे।* 
 *अपने पैरों पर खड़ी हो मुस्करायेगी बेटी।* 

पर्दा गिरता है

समाप्त
स्नेहलता पाण्डेय \'स्नेह\'
27/0

   5
3 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

28-Oct-2021 12:39 AM

Nice

Reply

ऋचा

27-Oct-2021 10:21 PM

बेहतरीन रचना... माम,

Reply

Seema Priyadarshini sahay

27-Oct-2021 09:57 PM

बहुत सुंदर नाटक

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